
संवाददाता नागेंद्र सिंह राजपूत
देवास। खिवनी वन्यजीव अभयारण्य में हाल ही में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के बाद जहां एक ओर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हैं, वहीं दूसरी ओर अभयारण्य की रक्षा के लिए स्थानीय ईको विकास समितियों ने बड़ा संदेश दिया है। अभयारण्य से सटी समितियों के सदस्यों ने एकजुट होकर संरक्षण के समर्थन में रैली निकालकर यह दिखा दिया कि जंगल उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा है।
इस रैली का नेतृत्व ईको पर्यटन समिति अध्यक्ष दीपक उईके तथा अभयारण्य से जुड़े गाइड व अन्य सदस्यों द्वारा किया गया। रैली में टांडा, भिलाई, ककड़दी, नंदा डाई, पटरानी, नंदाखेड़ा एवं रिच्छी ग्राम की ईको विकास समितियों के सदस्य शामिल हुए।
समिति सदस्यों ने कहा कि यह अभयारण्य केवल वन्यजीवों का नहीं, बल्कि हमारी आजीविका का स्रोत भी है। हमें यहां से महुआ, तेंदूपत्ता, आचार गुठली आदि प्राप्त होती हैं, जो बाजार में बेचकर हम अपनी आजीविका चलाते हैं। यह जंगल हमारे लिए मां के समान है, जो हमें बहुत कुछ देती है लेकिन बदले में कुछ नहीं मांगती।
उन्होंने यह भी बताया कि कई बार हमारी वन विभाग से मतभेद जरूर होते हैं, किंतु जब जंगल में आग लगती है या पेड़ों की अवैध कटाई रोकनी होती है, तो हम ही सबसे पहले आगे खड़े होते हैं।
अतिक्रमण से बिगड़ रहा पर्यावरण संतुलन
ग्रामीणों ने बताया कि पटरानी सहित कई गांवों को मिलने वाला जामनेर नदी का जल अतिक्रमण के कारण बाधित हो गया है। कभी कम गहराई पर मिलने वाला पानी अब दुर्लभ हो गया है। किसान पानी के संकट से जूझ रहे हैं।
प्रश्न उठाया – क्या सिर्फ वो ही आदिवासी हैं जो जंगल उजाड़ें?
समिति सदस्यों ने सवाल उठाया कि जो लोग ‘जल-जंगल-जमीन’ के नारे लगाकर जंगल काट रहे हैं, क्या वही असली आदिवासी हैं? और जो लोग पेड़ों को पूजते हैं, नदियों को मां मानते हैं, उनका क्या?
ग्रामीणों ने स्पष्ट कहा कि यदि जंगल को खेतों में बदलने की प्रवृत्ति नहीं रोकी गई, तो कुछ परिवार भले ही लाभ में रहें, लेकिन बाकी समाज को भारी नुकसान होगा।
ग्रामीणों की मांग – जंगल का संरक्षण हो, अतिक्रमण पर सख्ती से कार्रवाई हो
रैली के माध्यम से समितियों ने प्रशासन से आग्रह किया कि जंगलों की रक्षा के लिए कठोर कदम उठाए जाएं और अतिक्रमण पर किसी भी दबाव में आकर नरमी न बरती जाए।




