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खिवनी अभयारण्य में वन विभाग की बड़ी कार्रवाई, तोड़े 51 टप्पर — 49 को पहले से मिले थे पीएम आवास!

49 अतिक्रमणकारियों के पहले से स्वीकृत थे पीएम आवास, खिवनीखुर्द में बने हैं पक्के मकान


संवाददाता नागेंद्र सिंह राजपूत

देवास। जिले के खिवनी अभयारण्य क्षेत्र में सोमवार को वन विभाग द्वारा अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के तहत 29 परिवारों द्वारा बनाए गए 51 टप्परों को हटाया गया। ये टप्पर कथित तौर पर जंगल क्षेत्र में अतिक्रमण कर बनाए गए थे। लेकिन अब इस कार्रवाई पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि जिन लोगों के टप्पर तोड़े गए, उनमें से लगभग 49 लोगों को पहले से प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत पक्के मकान स्वीकृत हैं और वे खिवनीखुर्द में स्थायी रूप से रह रहे हैं।

प्रभावित परिवारों का कहना है कि वे वर्षों से अपने पक्के मकानों में रह रहे हैं और जिन टप्परों को तोड़ा गया, वे कुछ समय के लिए बनाए गए थे। इनमें कुछ लोगों के पक्के मकान भी पास में ही हैं, जो शासन से स्वीकृत हैं।

गौरतलब है कि वर्ष 2006 के बाद से वन विभाग किसी भी व्यक्ति को अभयारण्य क्षेत्र में अधिकार देने के पक्ष में नहीं रहा है। 2016 और 2017 में शासन द्वारा ऐसे 96 हितग्राही चिन्हित किए गए थे, जिन्हें 10–10 लाख रुपये तक की सहायता राशि स्वीकृत की गई थी। अब इसी नीति के तहत हाल ही में 23 जून को खिवनी अभयारण्य क्षेत्र में 215 व्यक्तियों की अतिक्रमण सूची बनाकर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई प्रारंभ की गई।

वन विभाग द्वारा एक माह पूर्व अतिक्रमणकारियों को नोटिस देकर सूचना दी गई थी कि उनके निर्माण अवैध हैं और उन्हें हटाया जाए। इसके बाद 24 जून को बेदखली आदेश जारी किए गए, जिसके तहत कार्रवाई हुई।

इस दौरान कलेक्टर श्री ऋतुराज सिंह, एसडीएम श्री पुनीत गेहलोत, डीएफओ श्री अमित सिंह चौहान और प्रशासनिक अधिकारी भी मौके पर मौजूद रहे। प्रशासन ने संवेदनशीलता दिखाते हुए प्रभावित परिवारों को अस्थायी रूप से 6–6 महीने की खाद्य राहत सामग्री व तिरपाल उपलब्ध कराए।

प्रशासन का कहना है कि जिन परिवारों के पास पक्के मकान हैं, वे उन्हीं में लौट सकते हैं। वहीं कुछ परिवारों को वर्ष 2022, 2023 और 2024 में पीएम आवास की स्वीकृति मिली है, जिनका निर्माण कार्य अभी प्रारंभ नहीं हुआ था।

अब यह स्पष्ट हो रहा है कि कार्रवाई से पहले दस्तावेजों का समुचित परीक्षण नहीं किया हो, जिसके चलते कई वास्तविक हितग्राही प्रभावित हो गए। प्रशासन और वन विभाग की इस समन्वयहीनता को लेकर स्थानीय स्तर पर विरोध भी सामने आ रहा है।

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